केवल डिग्री नहीं, शिक्षा प्राप्त करें:साध्वी
सिरसा,(थ्री स्टार): दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से राजकीय हाई स्कूल
बुर्जभंगू में सर्वश्री आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी ईश्वरी भारती ने कहा कि ऋषिकाल में विद्यालय विद्या के आलय अर्थात मंदिर हुआ करते थे पर आज के परिवेश में तो विद्यालय ऐसे हैं, जहां विद्या का लय अर्थात लोप होता है। विद्या मंदिर की पवित्रता श्रेष्ठता नष्ट करने में गलती केवल अध्यापकों की ही नहीं है। छात्र व उनके माता पिता भी इसमें बराबर के कुसूरवार है। उनहोंने शिक्षा को जीवन का नहीं, अपितु जीविका का एक साधन मान लिया है। जीवन को सफल बनाने के लिए उनकी मांग शिक्षा की नहीं है, अपितु डिग्री की है। वर्तमान हालात पर एक स्टीक टिप्पणी देते हुए रविंद्र नाथ टैगोर ने कहा था-हमारा आज का शिक्षित वर्ग सुंस्कृतवर्ग नहीं, अपितु उपाधिधारी उम्मीदवारों का वर्ग है। आज अधिकांश छात्र मात्र इस उददेश्य से विद्यालय में प्रवेश करते हैं कि किस प्रकार ऊंची से ऊंची डिग्री पाएं ओर इस डिग्री के बल पर अच्छी से अच्छी नौकरी प्राप्त करें। इस डिग्री को प्राप्त करने के लिए अनुचित माध्यम को अपनाने से भी परहेज नहीं करते। फीस, चंदा रिश्वत आदि सब कुछ डिग्री की देवी पर सहर्ष चढा देते हैं। इससे क्या होता है जो बच्चे कड़ी मेहनत व लगन से दिन रात एक करके काबिलियत हासिल करते हैं समाज के जिम्मेदार ओहदे के अधिकारी व सुपात्र होते हैं वे इनसे सवर्था वंचित रह जाते हैं। अब प्रश्र यह है कि इस कमी को कैसे दूर करें। सर्वप्रथम तो संपूर्ण समाज की मानसिकता को बदलना होगा और मानसिकता शिक्षा से नहीं दीक्षा से बदलेगी। दीक्षा अर्थात अपने भीतर ईश्वर का साक्षात्कार करना, आतंरिक स्तर पर प्रकाशित होना। प्राचीन भारतीय विद्या पद्वति शिक्षा एवं दीक्षा द्वारा बालक का संपूर्ण विकास करती थी। इसलिए जीवन के पूर्ण विकास व आनंद के लिए आज फिर से शिक्षा के साथ दीक्षा को जोडऩा होगा।
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